हरीश मर्तोलिया
पटना। बिहार में कोरोना ने हाहाकार मचा रखा है। इस बीच मुजफ्फरपुर एवं आसपास के क्षेत्रों में चमकी बुखार ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। मॉनसून के वक्त हर वर्ष इस क्षेत्र में चमकी बुखार, अर्थात एईएस का कहर टूट पड़ता है। पिछले वर्ष कुछ ही दिनों के कहर में 160 से ज्यादा बच्चों की जान इस बीमारी के कारण चली गई थी, जिसके बाद कई तरह की घोषणाएं और वादे सरकार द्वारा किए गए थे। इन वादों में टीकाकरण और पेडिएट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट की स्थापना, इस बीमारी पर विशेष शोध आदि शामिल थे।
आधिकारिक आंकड़े के अनुसार विगत कुछ ही दिनों में मुजफ्फरपुर में 59 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं,इनमें से 7 की मौत हो चुकी है। अब प्रतिदिन दो-तीन बच्चे इसके शिकार होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। पिछले वर्ष इस बीमारी की भयावहता का दंश झेल चुके इलाके के लोग भयभीत हैं। यह बीमारी 0 से 15 वर्ष के बच्चों में होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में तेज बुखार,दौरा(चमकी), प्रकाश से एलर्जी, निर्जलीकरण, मस्तिष्क में सूजन आदि के लक्षण सामने आते हैं। इससे पीड़ित बच्चों को तुरन्त अस्पताल में भर्ती करना जरूरी होता है। ज्यादातर पीड़ितों को आईसीयू की जरूरत होती है। यह इतनी गंभीर बीमारी होती है कि बड़ी संख्या में पीडितों की मौत हो जाती है।
पिछले वर्ष इस बीमारी ने अपना भयानक रूप दिखाया था और मुजफ्फरपुर में कुछ ही समय में 160 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी, जो देश-विदेश की मीडिया में सुर्खियां बनीं थीं। इसके बाद सरकार ने क्षेत्र के शून्य से 15 वर्ष के बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण की घोषणा की थी। यह टीकाकरण जापानी इंसेफेलाइटिस के टीका का किया जाना था। इस वर्ष 3 फरवरी से इस टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई। टीकाकरण के लिए निर्धारित समय के बाद संबंधित विभाग ने राज्य मुख्यालय को सूचना दे दी कि शत-प्रतिशत टीकाकरण किया जा चुका है। मगर राज्य स्वास्थ्य समिति ने जब आधा दर्जन प्रखंडों में जापानी इंसेफेलाइटिस के टीकाकरण की जांच कराई तो कई ऐसे बच्चे सामने आ गए, जिनका टीकाकरण हुआ ही नहीं था। राज्य स्वास्थ्य समिति की उस जांच में यह तथ्य उजागर हुआ कि जिला के सर्वाधिक प्रभावित प्रखंडों में 10 से 30 फीसदी बच्चे टीकाकरण से अब भी वंचित हैं।